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शब्द का अर्थ

धक्क  : स्त्री०=धक।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
धक्क-पक्क  : स्त्री०, क्रि० वि०=धक-धक।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
धक्कम-धक्का  : पुं० [हिं० धक्का] १. बार-बार बहुत अधिक या बहुत से आदमियों का परस्पर धक्का देने की क्रिया या भाव। २. ऐसी भीड़, जिसमें लोगों को बार-बार उक्त प्रकार से धक्के लगते हों।
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धक्का  : पुं० [सं० धम, हिं० धमक या सं० धक्क=नष्ट करना] १. किसी को धकेलने या आगे बढ़ाने के लिए उसके पीछे की ओर से डाला जानेवाला दबाव या किया जानेवाला आघात। जैसे—दरवाजा धक्के से खुलेगा। २. किसी ओर से वेगपूर्वक आकर लगनेवाला वह आघात जो किसी को धकेलता या दबाता हुआ उसके स्थान से आगे बढ़ा, हटा या गिरा दे। जैसे—गाड़ी के धक्के से वह जमीन पर गिर पड़ा। क्रि० प्र०—लगना।—लगाना। ३. किसी को अनादर या उपेक्षापूर्वक कहीं से निकालने या हटाने के लिए किया जानेवाला उक्त प्रकार का आघात। जैसे—कुछ लोग तो वहाँ से धक्का देकर निकाले गये। क्रि० प्र०—देना।—मारना।—सहना। मुहा०—धक्के खाना=बार-बार धक्कों का आघात सहते हुए हटाया जाना। जैसे—बहुत दिनों तक वह जगह-जगह धक्के खाता रहा। (किसी को) धक्का (या धक्के) देकर निकालना=बहुत ही अनादर या तिरस्कारपूर्वक दूर करना या हटाना। ४. किसी को दुर्दशाग्रसत करने या हीन स्थिति में पहुँचाने के लिए किया जानेवाला कोई कार्य। जैसे—अँग्रेजी शासन को एक धक्का और लगा। ५. जन-समूह या भीड़ की वह स्थिति, जिसमें चारों ओर से लोगों को धक्के लगते हों। जैसे—मेले-तमाशों में धक्का बहुत होता है। ६. लाक्षणिक रूप में, किसी दुःखद बात के परिणामस्वरूप होनेवाला मानसिक आघात; जैसे—लड़के की मृत्यु के धक्के ने उन्हें बहुत दुर्बल कर दिया है। क्रि० प्र०—पहुँचना।—लगना। ७. कोई ऐसा आघात जिसमें किसी प्रकार की विशेष क्षति हो। जैसे—(क) आप की बातों के फेर में हमें भी सौ रुपये का धक्का लगा। (ख) बाहर से माल आ जाने के कारण बाजार (या व्यापारियों) को बहुत धक्का लगा है। क्रि० प्र०—बैठना।—लगना। ८. कुश्ती का एक पेंच, जिसमें बायाँ पैर आगे रखकर विपक्षी की छाती पर दोनों हाथों से धक्का देते हुए नीचे गिराते हैं। छाप। ठोंढ़।
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धक्का-मार  : वि० [हिं०] १. धक्का देने या बल-प्रयोग करनेवाला। २. उद्दंडतापूर्वक आघात करनेवाला। (आचरण या व्यवहार)।
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धक्का-मुक्की  : स्त्री० [हिं० धक्का+मुक्का] ऐसी लड़ाई, जिसमें एक दूसरे को धक्के देते हुए घूसों से मारें। मुठ-भेड़।
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धक्काड़  : वि० [हिं० धाक] १. चारों ओर जिसकी महत्ता की खूब धाक जमी हो। २. अपने विषय का बहुत बढ़ा-चढ़ा विशेष ज्ञाता या पंडित। ३. बहुत बड़ा।
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